विधायिका

 

विधायिका(अनुच्छेद 79 – 129

  • अनुच्छेद :– 79 à संसद (राष्ट्रपति + राज्यसभा + लोकसभा)
  • अनुच्छेद – 80 :– ‘राज्यसभा’

                 – राज्यसभा नाम मे रखा गया, पहले इसका
                       नाम ‘काठनिसल ऑफ स्टेटस’ था।

                    – अन्य नाम – उच्च सदन, स्थायी सदन,
                         द्वितीय सदन, प्रथुड सदन

राज्यसभा सदस्य

      अधिकतम सदस्य                          वर्तमान सदस्य

              (250)                                       (245)

 निर्वाचित         मनोनीत               निर्वाचित         मनोनीत

  (238)             (12)                    (233)              (12)

                 किसान       राज्यों से       केंद्र शासित प्रदेशों से

                 कला             225                    8

                 साहित्य                              4 – जम्मू कश्मीर

                 समायोजना                         3 – दिल्ली से

                                                         1 – दिल्ली से

  • 8 राज्य से राज्यसभा में 1 – 1

प्रतिनिधि आता है –

1. मेथालय          2. मणिपुर                     3. नागालैंड

4. त्रिपुरा             5. अरुणाचल प्रदेश         6. गोवा

7. मिजोरम          8. सिक्किम

(शेष केंद्र शासित प्रदेशों को राज्यसभा में प्रतिनिधित्व नहीं   
  दिया गया क्योंकि उनकी जनसंख्या कम है)

  • हिमाचल प्रदेश तथा उत्तराखंड से à 3 – 3 प्रतिनिधि आते हैं।
  • सर्वाधिक उत्तर प्रदेश से – 31 प्रतिनिधि
  • राजस्थान से – 10 प्रतिनिधि
  • राज्यसभा हमारे परिसंघीय ढांचे का प्रतिनिधित्व करती है लेकिन सभी राज्यों को इसमें समान प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया है जैसे कि ब्रिटेन में सीनेट में प्रत्येक राज्य प्रतिनिधि आते हैं जबकि हमारे यहां प्रतिनिधित्व जनसंख्या के आधार पर दिया गया है।
  • निर्वाचन :-

राज्यसभा सदस्यों का निर्वाचन अप्रत्यक्ष रूप से होता है।

  • निर्वाचक मंडल :-

राज्य विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य

  • निर्वाचन पद्धति :-

आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति तथा एकल संक्रमणीय मत करा

  • राज्यसभा सिपाsई सदन है क्योंकि लोकसभा की भांति यह भंग नहीं होती। इसके सदस्यों का कार्यकाल – 6 वर्ष (हालांकि संविधान में उल्लेख नहीं) प्रति 2 वर्ष पश्चात राज्यसभा के 1/3 सदस्य सेवानिवृत्त होते हैं।

राज्यसभा की विशेष शक्तियां

  • अनुच्छेद – 249 :- राज्यसभा 2/3 बहुमत से प्रस्ताव पारित कर संसद को राज्य सूची के विषयों पर कानून बनाने की अनुमति दे सकती है।
  • यह कानून 1 वर्ष तक लागू रहता है।
  • यदि कानून की समयावधि को बदलना हो तो पूरी प्रक्रिया को दोहराना होता है।
  • अनुच्छेद 312 :- राज्यसभा 2/3 बहुमत से प्रस्ताव पारित करके संसद को नई अखिल अखिल भारतीय सेवाओं के सृजन की अनुमति दे सकती है।

       वर्तमान में 3 अखिल भारतीय सेवाएं हैं –

(i) IAS – ICS

(ii) IPS – IP

(iii) IFS (भारतीय वन सेवा) 1966

  • अनुच्छेद – 67 :– उपराष्ट्रपति को हटाने का प्रस्ताव (पहले) राज्यसभा में ही लाया जा सकता है।
  • अनुच्छेद – 81 :- ‘लोकसभा’
  • 1954 में यह नाम रखा गया था इससे पहले नाम ‘हाउस ऑफ पीपल’ था।
  • अन्य नाम – लोकप्रिय सदन, निम्न सदन,
                       प्रथम सदन, स्पाई सदन,

लोकसभा सदस्य

   अधिकतम सदस्य                                वर्तमान सदस्य

            552                                                 545

निर्वाचित          मनोनीत                 निर्वाचित        मनोनीत

   550                  2                       543                 2 

आंग्ल – भारतीय              राज्यों से    केंद्र शासित प्रदेशों से

                                      524                      19

राज्यों से लोकसभा सदस्य (524)

    नागालैंड – 1

     मिजोरम – 1

     सिक्किम – 1

     गोवा –                               राजस्थान – 25

     अरुणाचल प्रदेश – 2            उत्तर प्रदेश – 80

     मेघालय – 2

     मणिपुर – 2

     त्रिपुरा – 2

केंद्र शासित प्रदेशों से सदस्य

     लद्दाख – 1

     जम्मू कश्मीर – 5

     दिल्ली – 7

         शेष केंद्र शासित प्रदेशों

         से 1 – 1 सदस्य

  • अनुच्छेद – 82 :- परिसीमन आयोग
  • प्रत्येक जनगणना के बाद लोकसभा के निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन करने के लिए परिसीमन आयोग का गठन किया जाता है जो राज्य विधानसभा के निर्वाचन क्षेत्रों का भी परिसीमन करता है।
  • केंद्र सरकार द्वारा परिसीमन आयोग का गठन किया जाता है।
  • परिसीमन आयोग की अनुशंसा को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती।
  • अब तक 4 परिसीमन  आयोगों का गठन किया गया है –

  1. 1952           2. 1962          3. 1972          4. 2002

  • 42 वा संविधान संशोधन :- इसके द्वारा लोकसभा की सीटों की संख्या 2001 तक निश्चित कर दी गई।
  • 84 वां संविधान संशोधन (2001) :- इसके तहत लोकसभा सीटों की संख्या को 2026 तक निश्चित कर दिया गया।
  • इसमें 4th परिसीमन आयोग के गठन का प्रावधान था।
  • यह 1991 की जनगणना के आधार पर राज्यों में सीटों की संख्या में बदलाव किया बिना निर्वाचन क्षेत्रों का पुन: समायोजन करेगा ऐसा प्रावधान था।
  • इसी जनगणना के आधार पर अनुसूचित जाति तथा जनजाति के लिए आरक्षित सीटों का पुनर्निधारण परिसीमन आयोग करेगा।
  • 87 वां संविधान संशोधन :- चौथा परिसीमन आयोग 1991 के स्थान पर 2001 की जनगणना का प्रयोग करेगा।
  • 2002 में चौथे परिसीमन आयोग का गठन किया गया जिसके अध्यक्ष जस्टिस कुलदीप सिंह थे।
  • आयोग ने 2008 में अपनी सिफारिशें दी।
  • इसमें 22 राज्यों व 2 केंद्र शासित प्रदेशों के लिए परिसीमन किया।
  • निम्नलिखित राज्यों में परिसीमन नहीं किया गया–

(i) जम्मू कश्मीर     (ii) झारखंड      (iii) आसाम

(iv) अरुणाचल प्रदेश  (v) नागालैंड  (vi) मणिपुर

  • वर्तमान में अनुसूचित जाति तथा जनजाति के लिए आरक्षित सीटों की संख्या क्रमशः 84 तथा 47 सीटे है।
  • राजस्थान अनुसूचित जाति तथा जनजाति के लिए सीटों की संख्या क्रमश: 4 तथा 3 सीटें हैं।
  • अनुच्छेद – 83 :- संसद के सदनों का कार्यकाल
  • लोकसभा का कार्यकाल – 5 वर्ष
  • राष्ट्रपति कार्यकाल से पूर्व भी इसे भंग कर सकता है।
  • राष्ट्रीय आफतकाल के समय लोकसभा के कार्यकाल को एक बार में 1 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है।
  • अभी तक लोकसभा का कार्यकाल एक बार 1976 में बढ़ाया गया था।
  • राज्यसभा एक स्थायी सदन है।
  • अनुच्छेद – 84 :- ‘सांसदों की योग्यताएँ’
  • भारत का नागरिक होना चाहिए
  • लोकसभा हेतु आयु à 25 वर्ष
  • राज्यसभा हेतु आयु à 30 वर्ष
  • भारत में लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के मतदाता सूची में नाम होना चाहिए।
  • अनुच्छेद – 85 :- ‘संसद के सत्र’
  • राष्ट्रपति संसद का सत्र आहूत कर सकता है तथा सत्रावसान कर सकता है।
  • किसी भी सदन के दो सत्रों के मध्य 6 माह का अंतराल नहीं होना चाहिए।
  • वर्तमान में 3 नियमित सत्र बुलाए जाते हैं –

(i) बजट सत्र

(ii) मानसून सत्र

(iii) शीतकालीन सत्र

  • इसके अतिरिक्त विशेष सत्र भी बुलाए जा सकते हैं।
  • अनुच्छेद – 86 :- राष्ट्रपति संसद में संदेश भेज सकता है
                              और अभिभाषण दे सकता है।
  • अनुच्छेद – 87 :- ‘विशेष अभिभाषण’
  • राष्ट्रपति दोनों सदनों को साथ में अभिभाषण दे सकता है।
  • लोकसभा के आम चुनावों के बाद पहले सत्र में तथा प्रति वर्ष पहले सत्र में।
  • अनुच्छेद – 88 :- मंत्री व महान्यायवादी दोनों सदनों की       
                              कर्मवाही में भाग ले सकते हैं तथा
                              संसदीय समितियों की कार्यवाही में भी
                              भाग ले सकते हैं जिनमें उनका नाम
                              सदस्य के रूप में दिया गया है।
  • लेकिन इस आधार पर उन्हें मतदान करने का अधिकार नहीं है।
  • महान्यायवादी संसदीय समिति का सदस्य बन सकता है।

लोकसभा अध्यक्ष

  • भारत सरकार अधिनियम 1919 के द्वारा भारत में लोकसभा अध्यक्ष का पद सृजित किया गया।
  • 1921 ई. में फ्रेंडरिक व्हाइट पहले लोकसभा अध्यक्ष बने। सच्चिदानंद सिन्हा उपाध्यक्ष बने।
  • 1925 में विट्ठलभाई पटेल प्रथम भारतीय अध्यक्ष बने।
  • आजादी के बाद जी. वी. मावलंकर पहले लोकसभा अध्यक्ष बने।
  • अध्यक्ष का निर्वाचन :- लोकसभा सदस्य अपने में से ही
                        अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष का निर्वाचन करते हैं।
  • अध्यक्ष का कार्यकाल :- लोकसभा के भंग होने पर अध्यक्ष
                                      का कार्यकाल समाप्त नहीं होता
                                    बल्कि अगली लोक सभा की पहली
                                      बैठक तक वह अपने पद पर बना
                                      रहता है।
  • अध्यक्ष को हटाने की प्रक्रिया :- हटाने का प्रस्ताव 14 दिन
                                  के नोटिस के बाद लोकसभा में
                                  लोकसभा में पेश किया जाता है तथा
                                  लोकसभा में तत्कालीन सदस्यों के
                                   बहुमत (प्रभावी बहुमत) से यह  
                                   प्रस्ताव पारित होना चाहिए।
  • चर्चा के समय अध्यक्ष पीठासीन अधिकारी नहीं हो सकता लेकिन सदन की कार्यवाही में भाग ले सकता है तथा सामान्य मत दे सकता है लेकिन निर्णायक मत नहीं दे सकता।
  • ब्रिटेन में स्पीकर निर्वाचित होने के बाद अपने दल से त्यागपत्र दे देता है।
  • अध्यक्ष की शक्तियां :- वह लोक सभा की बैठकों की
                                       अध्यक्षता करता है।
  • वह लोकसभा के नियमों को लागू करवाता है और अनुशासन बनाए रखता है।
  • यदि बराबर मत की स्थिति हो तो अध्यक्ष निर्वाचक मत दे सकता है।
  • कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं इसका निर्णय अध्यक्ष करता है तथा उसका निर्णय अंतिम है इसे चुनौती नहीं दी जा सकती है।
  • वह दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की अध्यक्षता करता है।
  • वह दल – बदल के मामले में निर्णय करता है।
  • अध्यक्ष सदस्यों के त्यागपत्र स्वीकार करता है।
  • वह संसदीय प्रतिनिधि मंडल का नेतृत्व करता है।
  • वह लोक सभा की समितियों के अध्यक्ष की नियुक्ति करता है।

प्रोटेम स्पीकर

  • लोकसभा के आम चुनावों के बाद राष्ट्रपति उनमें से वरिष्ठतम सदस्य को प्रोटेम स्पीकर नियुक्त करता है (फ्रांसीसी परंपरा)
  • 17 वी लोकसभा 2019 में प्रोटेम स्पीकर – डॉ. वीरेंद्र कुमार 16वीं लोकसभा में प्रोटेम स्पीकर – कमलनाथ
  • प्रोटेम स्पीकर के निम्नलिखित दो कार्य हैं –

  (i) अध्यक्ष का निर्वाचन करवाना

  (ii) सभी सदस्यों को शपथ दिलवाना

  • प्रोटेम स्पीकर को शपथ राष्ट्रपति दिलाता है।
  • अध्यक्ष के निर्वाचन के साथ ही प्रोटेम स्पीकर का पद स्वत: ही समाप्त हो जाता है।

लोकसभा उपाध्यक्ष

  • निर्वाचन – अध्यक्ष के समान
  • कार्यकाल – लोकसभा भंग होने तक
  • हटाने की प्रक्रिया – अध्यक्ष के समान
  • कार्य – यह अध्यक्ष की अनुपस्थिति में लोक सभा की बैठकों की अध्यक्षता करता है।
  • जब यह अध्यक्षता करता है तो उसके पास वही शक्तियां होती है जो लोकसभा अध्यक्ष के पास होती है।
  • जब भी यह किसी संसदीय समिति का सदस्य बनता है तो यह उसका अध्यक्ष होता है।

10 सदस्यों का पैनल

  • लोकसभा के सदस्य यह पैनल बनाते हैं।
  • लोकसभा अध्यक्ष व उपाध्यक्ष दोनों की अनुपस्थिति में पैनल के सदस्य बैठकों की अध्यक्षता करते हैं।
  • यदि अध्यक्ष व उपाध्यक्ष दोनों पद रिक्त हो तो राष्ट्रपति अस्थाई अध्यक्ष की नियुक्ति करता है।

राज्यसभा का समाप्ति

  • उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन स्थापित होता है।
  • शक्तियां – लोकसभा अध्यक्ष के समान

        उपवाद – धन विषेयक संबंधी शक्ति संयुक्त बैठक
                       संबंधी शक्ति संसदीय प्रतिनिधि दल के
                        नेतृत्व संबंधी शक्ति।

राज्यसभा का उपसभापति

  • निर्वाचन व हटाने की प्रक्रिया लोकसभा अध्यक्ष व उपाध्यक्ष के समान होती है।
  • यह सभापति की अनुपस्थिति में राज्य सभा की बैठकों की अध्यक्षता करता है।
  • जब यह बैठकों की अध्यक्षता करता है तो इसके पास वही शक्तियां होती है जो सभापति के पास होती है।

सदस्यों का पैनल

  • राज्यसभा द्वारा यह पैनल तैयार किया जाता है।
  • लोकसभा की भांति पैनल में सदस्यों की संख्या निश्चित नहीं है।
  • सभापति व उपसभापति की अनुपस्थिति में पैनल के सदस्य बैठकों की अध्यक्षता करते हैं।
  • यदि सभापति व उपसभापति दोनों पद रिक्त हो तो राष्ट्रपति अस्थाई सभापति नियुक्त करता है।

राज्यसभा        

  • अनुच्छेद – 89     सभापति – पदेन सभापति

                         उपसभापति – निर्वाचित

  • अनुच्छेद – 90 – उपसभापति का कार्यकाल व हटाने की प्रक्रिया
  • अनुच्छेद – 91 – सभापति की अनुपस्थिति में कार्य निर्वहन
             1. उपसभापति            2. पैनल द्वारा
  • दोनों के पद रिक्त होने पर राष्ट्रपति द्वारा अस्थाई सभापति की नियुक्ति
  • अनुच्छेद – 92 – पद से हटाने का प्रस्ताव विचाराधीन होने
                            पर सभापति व उपसभापति का
                            पीठासीन अधिकारी नहीं होगा।

लोकसभा

  • अनुच्छेद – 93 –       अध्यक्ष            निर्वाचित

                              उपाध्यक्ष

  • अनुच्छेद – 94 – लोकसभा अध्यक्ष व उपाध्यक्ष का
                                 कार्यकाल वह हटाने की प्रक्रिया।
  • अनुच्छेद – 95 – अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उसके कार्यों
                              का निर्वहन –

उपाध्यक्ष à पैनल द्वारा

  • दोनों के पद रिक्त होने पर राष्ट्रपति द्वारा अस्थाई अध्यक्ष की नियुक्ति।
  • अनुच्छेद – 96 – पद से हटाने का प्रस्ताव विचाराधीन होने
                            पर अध्यक्ष व उपाध्यक्ष का मीठा सीन
                            पीठासीन अधिकारी नहीं होना।

सदन का नेता

  • प्रधानमंत्री जिस सदन का सदस्य होता है वह सदन का नेता होता है।
  • दूसरे सदन में प्रधानमंत्री किसी मंत्री को सदन का नेता घोषित करता है।

विपक्ष का नेता

  • 1969 में यह पद सृजित किया गया।
  • 1977 में इस पद को वैधानिक दर्जा दिया गया जिसके तहत इसे कैबिनेट मंत्री के समक्ष दर्जा दिया गया अर्थात के इसे कैबिनेट मंत्री के बराबर भत्ते व सुविधा दी जाती है।
  • विपक्षी दल का दर्जा प्राप्त करने के लिए सदन में कम से कम 10% सीटें होना आवश्यक है।

व्हिय (सचेतक)

  • प्रत्येक राजनीतिक दल सदन में अपना एक वही नियुक्त करता है। यह उस दल के सदस्यों के व्यवहार को नियंत्रित करता है। दल के सदस्यों को सदन में व्हिप के निर्देशों का पालन करना होता है।
  • यदि कोई सदस्य विहिप के निर्देशों का पालन नहीं करता तथा राजनीतिक दल 15 दिन में उसे क्षमा नहीं करता है तो सदस्य को दल – बदल का दोषी माना जाता है।
  • गुप्त मतदान में व्हिय जारी नहीं किया जाता है।

छाया मंत्रिमंडल / शैडो कैबिनेट

  • यह ब्रिटेन की परंपरा है।
  • ब्रिटेन में विपक्षी दलों के द्वारा छाया कैबिनेट की घोषणा की जाती है।
  • ताकि जनता वास्तविक कैबिनेट और शैडो कैबिनेट के बीच तुलना कर सके।
  • सरकार पर नैतिक दबाव उत्पन्न करने के लिए छाया मंत्रिमंडल बनाया जाता है।

किचन केबिनेट

  • प्रधानमंत्री तथा उसके मुख्य सलाहकार किचन केबिनेट कहलाते हैं।
  • यह एक अनौपचारिक शब्द है जो प्राय: मीडिया द्वारा प्रयोग में लिया जाता है।
  • गैर – मंत्री भी इसके सदस्य हो सकते हैं।

त्रिशंकु संसद

  • यदि आम चुनावों में किसी भी दल या गठबंधन को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता है तो इसे त्रिशंकु संसद कहते हैं।

लेम डक सेशन

  • नई लोकसभा के चुनाव के बाद पुरानी लोकसभा का यदि कार्यकाल पूरा नहीं हुआ है तो पुरानी लोकसभा का जो सत्र बुलाया जाता उसे लेमडक सेशन कहते हैं। क्योंकि वे सदस्य जो नई लोकसभा का चुनाव हार चुके हैं वे लेमडक कहलाते हैं।
  • अनुच्छेद – 97 :- सभापति, उपसभापति, लोकसभा अध्यक्ष
                            व उपाध्यक्ष के वेतन तथा भत्ते
  • अनुच्छेद – 98 :- राज्यसभा तथा लोकसभा के पृथक –
                               पृथक सचिवालय होंगे।
  • अनुच्छेद – 99 :- सांसदों को शपथ लेना आवश्यक है। ये
                            राष्ट्रपति के प्रतिनिधि (प्रोटेम स्पीकर) के
                            समक्ष अनुसूचि – 3 के प्रारूप के
                            अनुसार शपथ लेंगे।
  • अनुच्छेद – 100 :- गणपूर्ति (कोरम)
  • संविधान के प्रावधानानुसार गणपूर्ति हेतु 10% सदस्य होने चाहिए
  • लोकसभा व राज्यसभा के नियमानुसार गणपूर्ति हेतु एक – तिहाई सदस्य होने चाहिए।
  • अनुच्छेद – 101 :- ‘स्थानों का रिक्त होना’
  1. यदि कोई व्यक्ति लोकसभा व राज्यसभा दोनों के लिए निर्वाचित होता है तो 10 दिन के भीतर उसे एक स्थान रिक्त करना होगा अन्यथा उसकी राज्यसभा की सदस्यता समाप्त हो जाएगी।
  2. यदि कोई व्यक्ति पहले से किसी सदन का सदस्य है तथा बाद में दूसरे सदन के लिए निर्वाचित होता है तो पहले वाले सदन की उसकी सदस्यता स्वतः समाप्त हो जाएगी।
  3. यदि कोई व्यक्ति लोकसभा की 2 सीटों से निर्वाचित होता है तो 10 दिन के भीतर उसे एक स्थान रिक्त करना होगा अन्यथा उसके दोनों स्थान रिक्त हो जाएंगे।
  4. यदि कोई व्यक्ति संसद (लोकसभा) व राज्य विधानसभा दोनों के लिए निर्वाचित होता है तो उसे 14 दिन के भीतर एक स्थान रिक्त करना होगा अन्यथा उसकी संसद की सदस्यता समाप्त हो जाएगी।
  5. यदि कोई सांसद राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के पद के लिए निर्वाचित हो जाता है तो उसकी संसद की सदस्यता समाप्त हो जाएगी।
  6. यदि कोई सांसद राज्यपाल के पद पर नियुक्त किया जाता है तो उसकी संसद की सदस्यता समाप्त हो जाएगी।
  7. यदि न्यायालय किसी चुनाव को रद्द घोषित कर देता तो सदस्य की संसद सदस्यता समाप्त हो जाएगी।
  8. यदि कोई सदस्य सदन की अनुमति के बिना लगातार 60 दिनों तक सदन से अनुपस्थित रहे तो उसकी संसद सदस्यता समाप्त हो जाएगी।
  9. यदि कोई सांसद अध्यक्ष या सभापति को अपना त्यागपत्र दे दे तो उस की संसद सदस्यता समाप्त हो जाएगी।
  10. अनुच्छेद – 102 :- ‘सांसदों की योग्यताएं’
  11. यदि कोई सांसद भारत का नागरिक ना रहे अथवा उसने किसी विदेशी राज्य की नागरिकता स्वेच्छा से अर्जित कर ली हो या वह किसी विदेशी राज्य के प्रति निष्ठा को अमी अगिस्वीकार किया हुआ हो।
  12. यदि वह भारत सरकार अथवा किसी राज्य सरकार के अधीन कोई लाभ का पद ग्रहण कर ले।
  13. यदि कोई व्यक्ति दिवालिया घोषित हो चुका हो। 
  14. यदि न्यायालय में उसे विकृतचित घोषित किया हो
  15. संसद द्वारा निर्धारित अन्य अयोग्यताएं
  16. उपयुक्त कारणों से कोई व्यक्ति संसद की सदस्यता के अयोग्य होगा।

जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 :-

में निर्धारित अन्य निरर्हताएँ

  1. उसे चुनावी अपराध या चुनाव में बुरे आचरणके तहत दोषी ना ढहराया गया हो।
  2. उसे किसी अपराध में 2 वर्ष या उससे अधिक की सजा ना सुनाई हुई हो। किंतु प्रतिबंधात्मक निषेध विधि के तहत किसी व्यक्ति का वंदीकरण निरर्हता नहीं है।
  3. वह निर्धारित समय के अंदर चुनावी खर्च का ब्यौरा देने में असफल ना रहा हो।
  4. उसे सरकारी ठेका, कार्य या सेवाओं में कोई रुचि ना हो।
  5. वह निगम में लाभ के पद या निर्देशक या प्रबंध निर्देशक के पद पर ना हो जिसमें सरकार का 25% हिस्सा हो।
  6. उसे भ्रष्टाचार या निष्ठा हीन होने के कारण सरकारी सेवा से बर्खास्त ना किया गया हो।
  7. उसे विभिन्न समूह में शत्रुता बढ़ाने या रिश्वतखोरी के लिए दंडित ना किया गया हो।
  8. उसे छुआछूत, दहेज व क्षति जैसे सामाजिक अपराधों का प्रसार करने व इनमें सम्मिलित ना पाया गया हो।
  9. किसी सदस्य में उपयुक्त निरर्हताओं संबंधी प्रश्न पर राष्ट्रपति का निर्णय अंतिम होगा हालांकि राष्ट्रपति को चुनाव आयोग की सलाह के अनुसार कार्य करना चाहिए। (उपयुक्त विषय पर)
  10. अनुच्छेद – 103 :- राष्ट्रपति सांसदों की योग्यता का निर्णय
                             करता है (चुनाव आयोग की सलाह से)
  11. अनुच्छेद – 104 :- 500 जुर्माना प्रतिदिन (यदि कोई संसद का सदस्य नहीं है तथा संसद की कार्यवाही में भाग लेता है तो)
  12. अनुच्छेद – 105 :- सांसदों

               संसदीय समितियों       के विशेषाधिकार

                           सदन

सामूहिक विशेषाधिकार

दोनों सदनों के संबंध में (संसद)

  1. सदन को अपनी कार्यवाही, रिपोर्ट, वाद विवाद को प्रकाशित करने तथा अन्य को इसे प्रकाशित करने से रोकने का अधिकार है।
  2. 44 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1978 में सदन की पूर्व अनुमति के बिना संसद की कार्यवाही की सही रिपोर्ट के प्रकाशन की प्रेस की स्वतंत्रता को पुनस्र्थापित किया किन्तु यह सदन की गुप्त बैठक के मामले में लागू नहीं है।
  3. यह अपनी कार्यवाही से अतिथियों को बाहर कर सकती है तथा कुछ आवश्यक मामलों पर विचार-विमर्श हेतु गुप्त बैठक कर सकती है।
  4. संसद अपनी कार्यवाही के संचालन, कार्य के प्रबंधन तथा इन मामलों में निर्णय हेतु नियम बना सकती है।
  5. यह सदस्यों के साथ-साथ बाहरी लोगों को इसके विशेषाधिकारों के हनन सदन की अवमानना करने पर मिंदित, चेतावनी या कारावास द्वारा द्वारा दे सकती है।

(सदस्यों के मामलों में बर्खास्तगी या निष्कासन भी)

  • इसे किसी सदस्य की बंदी, अवरोध, अपराध सिद्धि, कारावास या मुक्ति संबंधी तत्कालिक सूचना प्राप्त करने का अधिकार है।
  • यह जांच कर सकती है तथा गवाह की उपस्थिति व संबंधित पेपर और रिकॉर्ड के लिए आदेश दे सकती है।
  • सदन क्षेत्रों में पीठासीन अधिकारी की अनुमति के बिना कोई व्यक्ति (सदस्य या बाहरी) बंदी नहीं बनाया जा सकता है और ना ही कोई कानूनी कार्रवाई (सिविल या अपराधिक) की जा सकती है।
  • न्यायालय सदन व इसकी कार्यवाही में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है।

व्यक्तिगत विशेषाधिकार – सांसदों के

  1. उन्हें संसद की कार्यवाही के दौरान, कार्यवाही चलने से 40 दिन पूर्व तथा कार्रवाई बंद होने के 40 दिन बाद तक बंदी नहीं बनाया जा सकता (केवल सिविल मामलों में)
  2. उन्हें संसद में भाषण देने की स्वतंत्रता है जो किसी न्यायालय में वादा योग्य नहीं है। कोई सदस्य संसद या इसकी किसी समिति में दिए गए व्यक्तित्व यामत के लिए किसी भी न्यायालय की किसी भी कार्यवाही के लिए उत्तरदाई नहीं है।
  3. वे न्याय निर्णय सेवा से मुक्त है। संसद के सत्र के समय सदस्य न्यायालय में लंबित मुकदमे में प्रमाण प्रस्तुत करने या उपस्थित होने के लिए मना कर सकते हैं।
  4. अनुच्छेद – 106 :- सांसदों के वेतन भत्ते
  5. अनुच्छेद – 107 :- ‘साधारण विधेयक’

                      साधारण विधेयक दो प्रकार के होते हैं –

(i) निजी विधेयक – सांसद जो मंत्री ना हो के द्वारा पेश
                              किया जाने वाला विधेयक।

(ii) सरकारी विधेयक – मंत्री द्वारा पेश किया जाने वाला
                                    विधेयक

  • विधेयक को तीन चरणों में पारित किया जाता है –

प्रथम पाठन

  • इसमें विधेयक का सामान्य परिचय दिया जाता है।
  • इस समय विधेयक पर चर्चा नहीं होती है और ना ही संशोधन होता है।
  • यदि विधेयक गजट में प्रकाशित हो चुका है तो इसे ही प्रथम पाठन मान लिया जाता है (गजट = सरकारी समाचार पत्र)

द्वितीय पाठन

  • इस पाटन में 3 उपकरण होते हैं –
  • सामान्य चर्चा :- (i) विधेयक पर तत्काल चर्चा की जाए
                               या चर्चा हेतु कोई अन्य दिन
                                निर्धारित किया जाए

(ii) विधेयक प्रवर समिति को सौंपा जाए।

(iii) विधेयक संयुक्त समिति को सौंपा जाए।

(iv) जनता की राय जानने के लिए समाचार पत्रों में प्रकाशित
       करवाया जाए।

  • समिति स्तर :- (i) विधेयक को खंडों में विभाजित करती
                              है।

(ii) समिति प्रत्येक खंड पर विस्तार से चर्चा करती है तथा
      यथा आवश्यक संशोधन करती है।

  • विचार – विमर्श :- (i) सदन प्रत्येक खंड पर विस्तार से
                                    चर्चा करता है।

                           (ii) सदन यथा आवश्यक संशोधन
                                  करता है।

                           (iii) प्रत्येक भाग को सदन मतदान
                                  द्वारा पारित करता है।

तृतीय पाठन

  • इसमें समग्र विधेयक पर चर्चा की जाती है (विधेयक के पक्ष – विपक्ष में)
  • अब विधेयक में संशोधन नहीं किया जा सकता लेकिन व्याकरण की अशुद्धियों को दूर किया जा सकता है।
  • विधेयक को पारित किया जाता है।
  • पहले सदन में पारित होने के बाद विधेयक को दूसरे सदन में भेजा जाता है।
  • दूसरे सदन में भी इसी प्रक्रिया को अपनाया जाता है।
  • दूसरा सदन अधिकतम 6 माह तक किसी विधेयक को रोक सकता है।
  • यदि दूसरा सदन विधेयक को संशोधित रूप में पारित करता है तो विधेयक को पुनः पहले सदन में भेजा जाता है।
  • दोनों सदनों के द्वारा विधेयक एक ही रूप में पारित होना चाहिए।
  • दोनों सदनों में पारित होने के बाद विधेयक राष्ट्रपति को भेजा जाता है।
  • अनुच्छेद – 108 :- ‘संयुक्त बैठक’
  • यदि एक सदन (संसद का) विधेयक को पारित कर दे वह दूसरा सदन विधेयक को पारित ना करें अर्थात दोनों सदनों में टकराव की स्थिति हो तो राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुला सकता है।
  • संयुक्त बैठक की अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष करता है।

लोकसभा अध्यक्ष की अनुपस्थिति में – निम्नलिखित

  1. लोकसभा उपाध्यक्ष (अनुपस्थिति हो तो)

   2. राज्यसभा उपसभापति (अनुपस्थिति हो तो)

   3. सदस्य स्वयं में से किसी को अध्यक्षता हेतु चुनते हैं।

  • संयुक्त बैठक में लोकसभा के नियमों और प्रक्रियाओं का प्रयोग किया जाता है।
  • केवल साधारण विधेयक व वित्त विधेयक के मामले में ही संयुक्त बैठक बुलाई जा सकती है।
  • धन विधेयक तथा संविधान संशोधन विधेयक के संबंध में संयुक्त बैठक का प्रावधान नहीं है।
  • अभी तक तीन बार संयुक्त बैठक बुलाई गई है –

(i) 1962 ई. में – दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961

(ii) 1978 ई. में – बैंक सेवा आयोग समाप्ति अधिनियम,
                                                                      1977

(iii) 2002 ई. में – आतंकवाद निवारक अधिनियम, 2002

  • अनुच्छेद – 110 :- ‘धन विधेयक की परिभाषा’
  • किसी कर का अधिरोपण, उत्सादन, परिवर्तन, परिहार या विनियमन
  • ऋण – केंद्र सरकार द्वारा उधार लिया लिए गए धन का विनियमन
  • भारत की संचित विधि या आकस्मिकता विधि की अभिरक्षा ऐसी किसी विधि में धन जमा करना या उसमें से धन निकालना।
  • भारत की संचित निधि से धन का विनियोग।
  • भारत की संचित निधि पर किसी व्यय को भारित घोषित करना या इस प्रकार के किसी व्यय की राशि में वृद्धि।
  • भारत की संचित निधि या लोक लेखे में किसी प्रकार के धन की प्राप्ति या अभिरक्षा या व्यय अथवा इनका केंद्र या राज्य की नीतियों का लेखा परीक्षण
  • उपयुक्त से संबंधित अन्य कोई प्रावधान
  • यदि किसी विधेयक में उपर्युक्त में से कोई प्रावधान हो तथा इसमें अन्य कोई प्रावधान ना हो तो इसे धन विधेयक कहते हैं।
  • अनुच्छेद – 109 :- ‘धन विदेश की प्रक्रिया’
  • धन विधेयक राष्ट्रपति की पूर्वानुमति से पेश किया जाता है।
  • धन विधेयक को केवल लोकसभा में पेश किया जा सकता है।
  • कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं इसका निर्णय लोकसभाध्यक्ष करता है तथा उसका निर्णय अंतिम होता है।
  • राज्यसभा धन विधेयक को अस्वीकार नहीं कर सकती, वह इसमें संशोधन भी नहीं कर सकती, वह केवल इस से अधिकतम 14 दिनों के लिए रोक सकती है।
  • राज्यसभा धन विधेयक पर सुझाव दे सकती है किंतु ये सुझाव लोकसभा के लिए बाध्यकारी नहीं है।
  • राष्ट्रपति धन विधेयक को पुनर्विचार हेतु नहीं लौटा सकता
  • धन विधेयक सरकारी विधेयक होता है।

वित्त विधेयक

अनुच्छेद – 110   यदि किसी विधेयक में केवल अनुच्छेद – 110 के प्रावधान हो तथा इसके अतिरिक्त कोई अन्य प्रावधान ना हो (धन विधेयक)।लोकसभा अध्यक्ष इस पर लिखता है। राज्यसभा में बेचते समय राष्ट्रपति के पास भेजते समयअनुच्छेद – 117(1)   यदि किसी विधेयक में अनुच्छेद 110 के प्रावधानों के साथ-साथ अन्य प्रावधान भी हो। यह राष्ट्रपति की पूर्वानुमति से पेश किया जाता है। इसे केवल लोकसभा में पेश किया जा सकता है। इसके बाद यह साधारण विधेयक की तरह पारित किया जाता है। राष्ट्रपति इसमें पुनर्विचार के लिए लौटा सकता है।अनुच्छेद – 110   यदि किसी विधेयक में अनुच्छेद – 110 का कोई प्रावधान नहीं हो किंतु संचित निधि से संबंधित अन्य कोई प्रावधान हो। इसे राष्ट्रपति की पूर्वानुमति की आवश्यकता नहीं होती है। इसे किसी भी सदन में पेश किया जा सकता है। किंतु राष्ट्रपति की अनुशंसा के बाद सदन इस पर चर्चा कर सकता है।
  • सभी धन विधेयक वित्त विधेयक होते हैं किंतु सभी वित्त विधेयक धन विधेयक नहीं होते हैं।
  • अनुच्छेद – 111 :- ‘राष्ट्रपति की सहमति’

              कोई विधेयक राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है तो उसके पास तीन विकल्प होते हैं –

  1. सहमति देना
  2. सहमति रोकना
  3. पुनर्विचार के लिए वापस भेजना
  4. अनुच्छेद – 112 :- ‘वार्षिक वित्तीय विवरण’ (बजट) यद्यपि संविधान में ‘बजट’ शब्द का उल्लेख नहीं है।
  5. वित्त मंत्री राष्ट्रपति की ओर से बजट पेश करता है
  • यह 24 विभागीय समितियों को सौंप दिया जाता है
  • अनुदान की मांगे पेश की जाती है
  • विपक्ष कटौती प्रस्ताव लाता है          नीतिगत कटौती

                                                  नित्यता कटौती

                                                  सांकेतिक कटौती

  • अनुदान की मांगे पारित कर दी जाती है
  • विनियोग विधेयक पेश किया जाता हैं –

व्यय जो संचित निधि पर       व्यय जो संचित निधि पर भारित

भारित होते हैं।                    नहीं होते हैं।

लोकसभा इस पर केवल      लोकसभा इन पर चर्चा करती है

चर्चा कर सकती है,                तथा मतदान द्वारा पारित

मतदान नहीं।                                   करती है।

कटौती प्रस्ताव

1. नीतिगत कटौती                          2. मित्तव्ययता कटौती                      3. संकेतिक कटौती

इसमें सरकार की संपूर्ण                 इसमें बजट के फिजूल खर्चो             इसमें सरकार की किसी

आर्थिक नीति की आलोचना             को उजागर किया जाता है           योजना विशेष की आलोचना

की जाती है तथा अनुदान                 तथा मितव्ययिता बरतने                की जाती है तथा उसमें

की मांग को कम करके                   पर बल दिया जाता है।             100 की कटौती का प्रस्ताव

1 कर दिया जाता है।                     इसमें कटौती की राशि                          रखा जाता है।

                                                 निश्चित नहीं है यह विपक्ष

                                                      निर्धारित करता है।

  • कटौती प्रस्ताव लोकसभा में पेश किए जाते हैं।
  • कटौती प्रस्ताव के कारण बजट पर विस्तार से चर्चा हो जाती है।
  • यदि कटौती प्रस्ताव पारित हो जाता है तो सरकार को त्यागपत्र देना होता है लेकिन यह पारित होता नहीं है क्योंकि लोकसभा में मंत्रिपरिषद का बहुमत होता है।

संचित निधि पर भारित व्यय –

  1. दूसरी अनुसूची में दिए गए वेतन
  2. उच्चतम न्यायालय के सभी व्यय
  3. संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) के सभी व्यय
  4. भारत सरकार के ऋण
  • अनुच्छेद – 113 :- ‘अनुदान की मांगे’
  • अनुच्छेद – 114 :- ‘विनियोग विधेयक’
  • अनुच्छेद – 115 :-

अनुपूरक अनुदान                         अतिरिक्त अनुदान                        अधिक अनुदान

यदि किसी सेवा के लिए           कोई नई सेवा जिसका बजट       यदि किसी वित्त वर्ष के दौरान

बजट में आंवटित राशि              में उल्लेख नहीं था किंतु              सरकार किसी सेवा पर

अपर्याप्त हो अर्थात                    कालांतर में सरकार को             बजट में आवंटित की गई

उस सेवा के लिए धन            उसके लिए धन की आवश्यकता       धनराशि से अधिक व्यय

कम पड़ जाए तो अधिक          हो तो अतिरिक्त अनुदान पेश       करती है तो अगले वित्त वर्ष

धन प्राप्त करने के लिए                      किया जाता है।             में अधिक अनुदान पेश किया

अनुपूरक अनुदान पेश                                                         जाता है।

किया जाता है।                                                              

  • इसे पेश करने हेतु राष्ट्रपति

                                                                                                के साथ लोक लेखा समिति
                                                                                                की पूर्वानुमति की भी
                                                                                               आवश्यकता होती है।

  • सभी अनुदान की मांगे राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति से पेश की जाती है।
  • अनुच्छेद – 116 :-

      लेखानुदान                            प्रत्ययानुदान                               अमवादानुदान

   बजट की प्रक्रिया मई         यदि सरकार को आकस्मिक       ऐसी कोई सेवा जिसका बजट में

   माह तक पूरी होती है         रूप से धन की आवश्यकता         प्रावधान नहीं है और सरकार

  जबकि नया वित्त वर्ष             होती है तो आवश्यकताओं       को धन की आवश्यकता होती है

  1 अप्रैल से प्रारंभ होता          के कारणों का उल्लेख         या सरकार की किसी अपवादस्वरूप

है तो इस अवधि (अप्रैल-मई)      किए बिना यह अनुदान        आवश्यकता के लिए यह अनुदान

  के खर्चों को पूरा करने             पेश किया जाता है                पेश किया जाता है (इस हेतु

  के लिए लेखानुदान पेश         (राष्ट्रपति की पूर्वानुमति से)     राष्ट्रपति की पूर्वानुमति की

    किया जाता है                                                               आवश्यकता नहीं होती है)

  • अंतरिम बजट :-

                  यदि सरकार का कार्यकाल कम बचा है तो  
                  इस स्थिति में अंतरिम बजट  पेश किया जाता
                  है ताकि मुख्य बजट अगली निर्वाचित सरकार
                   पेश कर सके।

  • इसका संविधान में उल्लेख नहीं है।
  • अनुच्छेद – 118 :- संसद अपने कार्यों के सुचारू संचालन
                               के लिए स्वयं नियम बना सकती है।
  • प्रश्न काल – 11 – 12 बजे तक प्रश्नकाल होता है सदस्य
                               मंत्रियों से प्रश्न पूछते हैं।
  • शून्य काल – 12 – 1 बजे तक प्रश्नकाल होता है।
  • इसमें संसद सदस्य बिना पूर्व सूचना के मामले उठा सकते हैं।
  • यह भारतीय नवाचार है।
  • यह 1962 से शुरू हुआ।
  • लंच – 1 – 2 बजे तक होता है।
  • शाम की कार्रवाही – 2 बजे से अंत तक

 इस समय विभिन्न विधायकों व प्रस्तावों पर चर्चा होती है।

  • राज्यसभा में प्रश्नकाल व सुनने काल की अवधि लोकसभा के विपरीत होती है अर्थात 11 – 12 बजे तक शून्यकाल तथा 12 बजे से प्रश्नकाल होता है।

प्रश्न – 3 प्रकार के

तारांकित प्रश्न वे प्रश्न जिनके उत्तर मौखिक रूप से दिए जाते हैं।इसमें अनुपूरक  प्रश्न पूछे जाते जा सकते हैं। प्रतिदिन à लोकसभा में – 20 प्रश्न राज्यसभा में – 15 प्रश्नअतारांकित प्रश्न वे प्रश्न जिनका उत्तर लिखित रूप में दिया जाता है। इसमें अनुपूरक प्रश्न नहीं पूछे जा सकते हैं। प्रतिदिन à लोकसभा में – 230 + 25 प्रश्न राज्यसभा में – 160 प्रश्न एक सांसद अधिकतम 10 प्रश्न पूछ सकता है।अल्प सूचना  प्रश्न यदि कोई प्रश्न 15 दिन से कम के नोटिस पर पूछा जाता है। अति आवश्यक मामलों में यह प्रश्न पूछा जाता है। मंत्री की सहमति के बाद इस प्रकार के प्रश्न स्वीकार किए जाते हैं। लोकसभा में – 1 प्रश्न राज्यसभा में – 1 प्रश्न

महत्वपूर्ण प्रस्ताव

विश्वास प्रस्ताव

  • लोकसभा में सत्रा पक्ष के द्वारा अपना बहुमत सिद्ध करने के लिए यह प्रस्ताव पेश किया जाता है।
  • यदि यह पारित नहीं होता है तो मंत्री परिषद को त्यागपत्र देना पड़ता है।
  • सामान्यता तथा गठबंधन की सरकार में इसकी आवश्यकता पड़ती है।

अविश्वास प्रस्ताव

  • यह लोकसभा में विपक्ष के द्वारा लाया जाता है।
  • इस पर 50 सदस्यों के हस्ताक्षर होने चाहिए।
  • इसमें अविश्वास का कारण बताने की आवश्यकता नहीं होती है।
  • यह किसी मंत्री विशेष के विरोध नहीं लाया जा सकता है वरन् यह समस्त मंत्रिपरिषद के विरोधी लाया जाता है।
  • यदि यह पारित हो जाता है तो मंत्री परिषद को त्यागपत्र देना पड़ता है।

निंदा प्रस्ताव

  • क्योंकि मंत्रिपरिषद केवल लोकसभा के प्रति उत्तरदाई होता है होती है इसलिए लोकसभा ही मंत्रिपरिषद की निंदा कर सकती है अतः निंदा प्रस्ताव केवल लोकसभा में लाया जाता है।
  • इस पर 50 सदस्यों के हस्ताक्षर होने चाहिए।
  • इसमें निंदा का कारण बताना आवश्यक है।
  • यह किसी मंत्री विशेष के विरोध भी लाया जा सकता है तथा समस्त मंत्रिपरिषद के विरोध भी लाया जा सकता है।
  • यदि यह पारित हो जाता है तो मंत्रिपरिषद को त्यागपत्र नहीं देना पड़ता है।

स्थगन प्रस्ताव

  • यदि कोई बड़ी दुर्घटना घटती हो जाती है तो तत्काल उस पर चर्चा करने के लिए सदन की नियमित कार्यवाही को सत गीत करने के लिए यह प्रस्ताव लाया जाता है।
  • इस प्रस्ताव में निम्नलिखित विशेषताएं होनी चाहिए –

1. प्रस्ताव किसी एक ही विषय से संबंधित हो

2. कोई तत्कालिक विषय हो।

3. विषय स्पष्ट व तथ्यात्मक हो

4. जनहित से जुड़ा विषय हो

  • चुंकी स्थगन प्रस्ताव में सरकार की निंदा का अंश होता है इसलिए इसे केवल लोकसभा में ही लाया जा सकता है।
  • इस पर 50 सदस्यों के हस्ताक्षर होने चाहिए।

ध्यानाकर्षण प्रस्ताव

  • यदि कोई बड़ी दुर्घटना घटती होती है तो उस पर किसी मंत्री का ध्यान आकर्षित करने के लिए यह प्रस्ताव लाया जाता है।
  • 1 दिन में 2 ध्यानाकर्षण प्रस्ताव लाए जा सकते हैं।
  • एक ध्यानाकर्षण प्रस्ताव में अधिकतम 5 सदस्यों के नाम हो सकते हैं।
  • इसमें मंत्री केवल वक्तव्य देता है।
  • इसमें चर्चा का प्रावधान नहीं है तथा मतदान भी नहीं होता है।
  • यह भारतीय नवाचार है, 1954 में प्रारंभ हुआ।
  • प्रक्रिया के नियमों में इसका उल्लेख है।
  • इसमें सरकार की निंदा नहीं होती है इसलिए इसे दोनों सदनों में पेश किया जा सकता है।

अल्पकालीन चर्चा

  • 1953 से यह प्रारंभ हुई।
  • इसके तहत लोक महत्व के किसी विषय को उठाया जाता है।
  • इस पर दो अतिरिक्त सदस्यों के हस्ताक्षर होने चाहिए।
  • इसके लिए कार्य मंत्रणा समिति (Business Advisory Committee) की सहमति आवश्यक होती है।
  • इसमें चर्चा का समय (लोकसभा में – 2 घंटे, राज्यसभा में 2:30 घंटे) निश्चित है इसलिए इसे अल्पकालीन चर्चा कहा जाता है।

नियम 377

  • 1966 ई. में प्रारंभ
  • यह लोकसभा का नियम है।
  • इसके तहत लोकमहत्व के वे विषय जिन्हें प्रश्नकाल, ध्यानाकर्षण प्रस्ताव व अल्पकालीन चर्चा के दौरान नहीं उठाया गया है उन्हें इस नियम के तहत उठाया जा सकता है।
  • इसमें चर्चा के दौरान मंत्री का उपस्थित होना आवश्यक नहीं है तथा उसके द्वारा वक्तव्य देना भी आवश्यक नहीं है।
  • इसमें प्रतिदिन 20 प्रश्न (विषयों) को उठाया जा सकता है।

समाप्ति प्रस्ताव

  • यह संसद में चर्चा को समाप्त करने के लिए लाया जाता है।  
सामान्य समाप्ति   यदि किसी विधेयक पर चर्चा पूरी हो जाती है अर्थात चर्चा के बिंदुओं का दौहराव होने लगता है तो सामान्य समाप्ति द्वारा चर्चा को समाप्त कर दिया जाता है।कंगारू समाप्ति   यदि सदन के पास समयाभाव है और विधि के सभी बिंदुओं पर चर्चा संभव नहीं है तो इस स्थिति में अध्यक्ष सर्वदलीय बैठक बुलाता है और उसमें कंगारू समाप्ति के लिए सहमति बनाता है। इसमें विधेयक के केवल महत्वपूर्ण बिंदुओं पर चर्चा की जाती है और उसके बाद चर्चा समाप्त कर दी जाती है।गिलोटिन समाप्ति   यदि सदन के आसपास समय भाव है जिससे कि सदन के सभी बिंदुओं पर चर्चा संभव नहीं है तो ऐसी स्थिति में पहले से ही चर्चा का समय निश्चित कर दिया जाता है और समय पूरा होने पर चर्चा को समाप्त कर दिया जाता है।

लोकसभा के भंग होने पर किसी विधेयक पर प्रभाव

  • यदि विधेयक लोकसभा के संपर्क में आया हुआ है तो वह लोकसभा के भंग होने पर समाप्त हो जाएगा।
  • यदि कोई विधेयक प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से राष्ट्रपति के संपर्क में आया हुआ है तो वह समाप्त नहीं होगा।

यथा –

  • यदि कोई विधेयक लोकसभा में पेश किया गया है अथवा लोकसभा में विचाराधीन है तो लोकसभा के साथ ही विधेयक समाप्त हो जाएगा।
  • यदि विधेयक लोकसभा में पारित हो गया है और राज्यसभा में विचाराधीन है तो लोकसभा में भंग होने के साथ विधेयक समाप्त हो जाएगा।
  • यदि कोई विधेयक राज्यसभा में पेश किया गया है और उस पर अभी विचार चल रहा है तो लोकसभा के भंग होने पर भी देख समाप्त नहीं होगा।
  • यदि विधेयक राज्यसभा में पेश किया गया था और पारित कर दिया गया है किंतु अमी लोकसभा मैं नहीं भेजा गया तो विधेयक समाप्त नहीं होगा।
  • राज्यसभा द्वारा पारित विधेयक यदि लोकसभा में विचाराधीन है तो लोकसभा के भंग होने पर विधेयक समाप्त हो जाएगा ।
  • विधेयक यदि राष्ट्रपति के पास विचाराधीन है, पुनर्विचार हेतु वापस लौटाया गया है, विधेयक पर संयुक्त बैठक बुलाई गई है तो विदेश समाप्त नहीं होगा।

संसदीय समितियां

  • संसदीय समितियों का उदभाव ब्रिटेन में हुआ था किंतु वर्तमान में इनका प्रयोग अमेरिका में ज्यादा किया जाता है।
  • भारत सरकार अधिनियम 1919 ई. से भारत में संसदीय समितियों का आरंभ हुआ।
  • 1921 ई. में पहली बार संसदीय समितियों का गठन किया गया।
  • संसदीय समितियां दो प्रकार की होती है –

      1. स्थाई समिति                           2. अस्थाई समिति

  • संसदीय समितियों में कोरम (गणपूर्ति) हेतु एक तिहाई (1/3) सदस्य उपस्थित होने चाहिए।

संसदीय समितियों का महत्व

  • यह कार्य विभाजन के सिद्धांत पर आधारित है। संसद के पास कार्य अधिक होते हैं जबकि समय का अभाव होता है तथा तथा अतः विभिन्न कार्यों को समितियों में बांट दिया जाता है जिससे कम समय में अधिक कार्य होता है।  
  • विशेषज्ञता को प्रोत्साहन मिलता है क्योंकि विषय विशेष के विशेषज्ञों को ही उस समिति में सदस्य बनाया जाता है।  
  • गोपनीयता रखने में सहायक है – संसद को राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित अनेक संवेदनशील मुद्दों पर निर्णय लेना होता है जिन पर खुले सदन में चर्चा नहीं की जा सकती इसलिए गोपनीयता को बनाए रखने हेतु संसदीय समितियां इन पर विचार करती है।
  • संसदीय समितियों के माध्यम से विधायिका का कार्यपालिका पर नियंत्रण बढ़ता है।  
  • यह लोकसभा व राज्यसभा के मध्य सहयोग वह सामंजस्य को बढ़ावा देती है क्योंकि अनेक समितियों में लोकसभा व राज्यसभा दोनों के सदस्य होते हैं।
  • सत्ता पक्ष व विपक्ष के मध्य सहयोग व सामंजस्य को बढ़ावा देती है क्योंकि इन समितियों में सत्ता पक्ष व विपक्ष दोनों के सदस्य होते हैं।

स्थायी समितियाँ

प्राक्कलन समिति

  • इसमें 30 सदस्य होते हैं (मूलतः 25 सदस्य, 1956 में संख्या बढ़ाकर 30)
  • सभी सदस्य लोकसभा से होते हैं।
  • आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति से सदस्यों का निर्वाचन होता है।
  • सदस्यों का कार्यकाल 1 वर्ष होता है।
  • मंत्री इसका सदस्य नहीं बन सकता है।
  • कार्य – (i) बजट प्रावधानों की समीक्षा करना

          (ii) उनकी कमियों को दूर करना

       (iii) बजट प्रावधानों की अनियमितताओं को दूर करना।

लोक लेखा समिति

  • इसमें 22 सदस्य होते हैं। (15 लोकसभा + 7 राज्यसभा से)
  • अनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति से सदस्यों का निर्वाचन किया जाता है।
  • इसका अध्यक्ष विपक्षी दल से होता है।
  • इसका कार्यकाल 1 वर्ष होता है। 
  • मंत्री इसका सदस्य नहीं बन सकता है।
  • कार्य –
  • कैग के सामान्य प्रतिवेदन की समीक्षा करना
  • बजट के क्रियान्वयन की समीक्षा करना तथा क्रियान्वयन की अनियमितताओं को उजागर करना
  • अधिक अनुदान के लिए लोक लेखा समिति की अनुमति आवश्यक है।  

लोक उपक्रम समिति

  • इसमें 22 सदस्य होते हैं (15 लोकसभा + 7 राज्यसभा से)
  • अनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति से सदस्यों का निर्वाचन होता है।  
  • सदस्यों का कार्यकाल 1 वर्ष होता है।  
  • मंत्री सदस्य नहीं बन सकता
  • कार्य –
  • फैग (CAG) के लोक उपक्रम प्रतिवेदन की जाँच करना

कार्य मंत्रणा समिति

  • यह लोकसभा तथा राज्यसभा के लिए अलग-अलग होती है।
  • लोक सभा समिति में – 15 सदस्य होते हैं (अध्यक्षता – लोकसभा अध्यक्ष द्वारा)
  • राज्यसभा की समिति में – 11 सदस्य होते हैं (अध्यक्षता सभापति द्वारा)
  • कार्य – सदन के दैनिक कार्यक्रम का निर्धारण करना।

विभागीय समितियां

  • इनका आरंभ अमेरिका से हुआ।
  • 1989 में संसद ने विभागीय समितियों के लिए अधिनियम पारित किया।
  • 1993 में 17 विभाग के समितियों की स्थापना की गई
  • 2004 में इनकी संख्या बढ़ाकर 24 कर दी गई।
  • प्रत्येक समिति में 31 सदस्य होते हैं (21 लोकसभा + 10 राज्यसभा से)
  • 16 समितियों के अध्यक्षों की नियुक्ति लोकसभा अध्यक्ष द्वारा तथा 8 समितियों के अध्यक्ष की नियुक्ति राज्य सभा समाप्ति द्वारा की जाती है।
  • कार्य –
  • वित्त मंत्री द्वारा बजट पेश करने के बाद बजट विभागीय समितियों को सौंप दिया जाता है।
  • यह विभागीय समितियां विभिन्न विभागों के बजट की समीक्षा करती है।
  • एक समिति एक से अधिक विभागों के बजट की समीक्षा करती है।

अस्थायी समितियाँ

  • उद्देश्य विशेष के लिए इन समितियों का गठन किया जाता है तथा उद्देश्य प्राप्ति के बाद यह समितियाँ स्वतः समाप्त हो जाती है।

जैसे –

  • किसी विधेयक के लिए प्रवर समिति या तथा संयुक्त समिति का गठन किया जाता है।
  • उद्देश्य विषय के लिए संयुक्त संसदीय समिति (JPC) का गठन किया जाता है।
  • 31 सदस्य (21 लोकसभा + 10 राज्यसभा से)
  • अभी तक गठित संयुक्त संसदीय समितियां :-
  • बोफोर्स घोटाला
  • हर्षद मेहता घोटाला (शेयर बाजार)
  • शीतल पेय पदार्थों में कीटनाशक
  • केतन पारेख शेयर बाजार घोटाला
  • 2G घोटाला (पी.सी. चाकू)
  • वी.वी.आइ. पी. हेलीकॉप्टर घोटाला (निर्णय लिया गया किंतु गठन नहीं)
  • अनुच्छेद – 120 :-
  • संसद में प्रयोग की जाने वाली भाषा
  • हिंदी तथा अंग्रेजी का उपयोग होता है।
  • किंतु अध्यक्ष व सभापति की अनुमति से अन्य भाषा का भी प्रयोग किया जा सकता है।
  • अनुच्छेद – 141 :-
  • संसद में किसी न्यायाधीश के व्यवहार पर चर्चा तथा टिप्पणी नहीं की जा सकती है।
  • अर्थात संसद न्यायपालिका के कार्यों में हस्तक्षेप नहीं कर सकती।
  • किंतु किसी न्यायाधीश को घटाने के प्रस्ताव के समय चर्चा की जा सकती है।
  • अनुच्छेद – 122 :- न्यायालय सदन के आंतरिक मामलों में
                                हस्तक्षेप नहीं कर सकता।
  • अनुच्छेद – 123 :- अध्यादेश
संसदीय शासन व्यवस्था   इसमें कार्यपालिका के दो प्रमुख होते हैं – (i) एक नाममात्र का (ii) दूसरा वास्तविक इसमें राष्ट्राध्यक्ष व शासनाध्यक्ष अलग-अलग होते हैं। कार्यपालिका प्रमुख अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित होता है वह बहुमत प्राप्त दल का नेता होता है। इसमें स्पष्ट शक्ति पृथक्करण नहीं होता है क्योंकि कार्यपालिका विधायिका का भाग होती है। (मंत्री विधायिका के भी सदस्य होते हैं) कार्यपालिका सामूहिक रूप से विधायिका के प्रति उत्तरदाई होती है अर्थ अर्थ विधायिका अविश्वास प्रस्ताव के द्वारा कार्यपालिका को हटा सकती है। इसमें सामूहिक उत्तरदायित्व होता है। विधायिका कार्यपालिका के दैनिक कार्यों पर नियंत्रण रखती है (विभिन्न प्रकार के प्रश्नों व प्रस्तावों के माध्यम से)अध्यक्षता शासन व्यवस्था   इसमें कार्यपालिका का एक ही प्रमुख होता है – वास्तविक इसमें राष्ट्राध्यक्षही शासनाध्यक्ष होता है। कार्यपालिका प्रमुख सामान्य: जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित होता है। वह बहुमत प्राप्त दल का नेता नहीं होता है।इसमें स्पष्ट शक्ति पृथक्करण होता है क्योंकि कार्यपालिका और विधायिका पूर्णत: पृथक होते हैं (मंत्री विधायिका का सदस्य नहीं रह सकता है) कार्यपालिका सामूहिक रूप से विधायिका के प्रति उत्तरदाई नहीं होती अर्थात विधायिका अविश्वास प्रस्ताव द्वारा कार्यपालिका को नहीं हटा सकती है। इसमें केवल व्यक्तिगत उत्तरदायित्व होता हैविधायिका कार्यपालिका के दैनिक कार्यों पर नियंत्रण नहीं रखती है क्योंकि विधायिका कार्यपालिका से प्रश्न नहीं पूछ सकती तथा उसके विरोध प्रस्ताव भी नहीं लाए जा सकते।
.

Leave a Comment