अधिगम के अनुक्षेत्र/पक्ष

                        
[अधिगम के अनुक्षेत्र / पक्ष]
 
[आप अधिगम किन – किन रास्तों से कर सकते हैं, उन्हें अधिगम के पक्ष कहते हैं।]
 
अधिगम का उद्देश्य :- छात्र / अधिगमकर्ता व्यवहार में
                                   अपेक्षित परिवर्तन लाना (अभ्यास,
                                    प्ररीक्षण व अनुभव के आधार पर)।

 
उद्देश्य की पूर्ति :- छात्र / अधिगमकर्ता में ये परिवर्तन उसके
                         अधिगम के पक्षों के माध्यम से किए जाते
                     हैं। (ज्ञान, क्रिया तथा भावनाओं के आधार पर)

 
व्यवहार क्या है :- गुडवर्थ के अनुसार जीवन के किसी भी
                           अभिव्यक्ति को किया कहा जा सकता है
                           और व्यवहार ऐसी सभी क्रियाओं का एक
                            संयुक्त नाम है।

                                (Doing, thinking & Feeling)
  अधिगम के अनुक्षेत्र / पक्ष :- मुख्यतः 3 पक्ष निम्न है –
 
1. संज्ञानात्मकपक्ष     2. क्रियात्मक पक्ष        3. भावात्मक पक्ष
(Cognative        (conative domain   (Affective domain domain of learning)     of learning)       of learning)

प्रत्यक्षात्मक पक्ष           प्रत्यात्मक            साहचर्यात्मक अधि.
(Preceptual)         (conceptual)       (learning with
                                                                 Association)
1.     संज्ञानात्मक पक्ष :-        इस पक्ष से संबंधित अधिगम का उद्देश्य छात्र के ज्ञान में परिवर्तन लाना तथा उसका भौतिक व मानसिक विकास करना। इसमें ज्ञानेंद्रियों और मस्तिष्क का महत्वपूर्ण योगदान है।
  यह पक्ष बालक के शैक्षणिक विकास तथा कैरियर विकास के लिए महत्वपूर्ण है।
(सुनना, पढ़ना, सोचना, विचारना, कल्पना, तर्क, अनुमान, चिंतन, संश्लेषण – विश्लेषण, वर्णन, व्यवस्था, संक्षिप्तीकरण, सरलीकरण, विस्तारीकरण, निष्कर्ष, आलोचना इत्यादि।

संज्ञानात्मक अधिगम
प्रत्यक्षात्मक अधिगम
(Perceptual)
·       वस्तुओं के प्रत्यक्ष होने से जो ज्ञान प्राप्त होता है।
·       यह ज्ञान मूर्त भौतिक जगत से संबंधित होता है (अर्थात स्थूल आंखों से देखा जा सकता है।)
·       यह शैश्वास्था व बाल्यावस्था में महत्वपूर्ण है।
 
प्रत्यात्मक अधिगम
(Conceptual)
·       ऐसा ज्ञान जो अमूर्त विषयों से संबंधित होता है। अर्थात जिसे स्थूल आंखों से ना देखा जा सके। इसमें तर्क, चिंतन, मनन, कल्पना, इत्यादि का महत्वपूर्ण योगदान है।
 
साहचर्यात्मक अधिगम
 
·       जब पुराने ज्ञा. तथा अनुभव के आधार पर किसी नय तथ्य को सीखा जाता है।
 
2. क्रियात्मक अधिगम / पक्ष :-
  इस अधिगम का उद्देश्य छात्रों के pschyophysical मनोदैहिक व्यवहार में परिवर्तन लाना।
  इसमें गामक / गत्यात्मक, क्रियात्मक तथा शारीरिक रूप से छात्रों को मजबूत करने का प्रयास किया जाता है।
  इसमें कमेंद्रियोंऔर ज्ञानेंद्रियों का योगदान होता है।
  इसमें छात्र की कला और कौशल में निपुण करके उसकी क्षमताओं को विकसित किया जाता है।
 
जैसे :-
      चलना, दौड़ना, नाचना, गाना, सिलाई, बुनाई, जिमनास्टिक खेल, यांत्रिक तथा मशीनी उपकरणों के कार्य।
3.  भावात्मक पक्ष :-
  छात्रों के भावात्मक / संवेगात्मक व्यवहार में परिवर्तन लाना।
  इसमें ज्ञान व कौशल की अधिक आवश्यकता नहीं होती।
  छात्रों में सामाजिक और संवेगात्मक अधिगम विकसित करके उसकी व्यक्तिगत व सामाजिक प्रगति को सुनिश्चित किया जा सकता है।
  संवेग तथा हाव-भाव के आधार पर किया जाने वाला अधिगम।
  मूक – बधिर तथा दिव्यांगों हेतु महत्वपूर्ण है।
Example :-
  उदासीन, सुरती – दुरती होना, क्रोधित होना, पसंद नापसंद आना, रुचि (लगाव), अभिरुचि (कौशल को अर्जित करने की क्षमता), अभिवृत्ति इत्यादि का प्रदर्शन करना।
  अधिगम के प्रकार :-
अधिगम के पक्ष                     अधिगम की विधियाँ                     अधिगम के प्रकार
(1) क्रियात्मक                 (1) अनुकरण द्वारा सीखना             (1) गत्यात्मक / गानक/
                                                                                         शारीरिक अधिगम
(2) संज्ञानात्मक             (2) सूज भुज द्वारा सीखना            (2) प्रतिबोधनात्मक अधिगम
                               (3) अभ्यास द्वारा सीखना             (3) संकल्पनात्मक अधिगम
                                        भूलकर सीखना
1. गामक / गत्यात्मक / शारीरिक अधिगम :-
  शैश्वास्थामें में महत्वपूर्ण।
  शरीर के द्वारा की जाने वाली क्रियाओं से सीखना / अनुकरण विधि से सीखना।
  यह मानव के अधिगम का पहला स्तर है तथा मन के विकसित होने से पहले होता है।
  इसमें शरीर वस्तुओं का उपयोग करना सीखा जाता है।
  मांसपेशियों का विकास तथा पैरों का उचित प्रयोग ताकि शरीर को शक्ति गति मिले।
2. प्रतिबोधनात्मकअधिगम :-
    बालक के मस्तिष्क में Image तथा विचार बनते हैं। स्थाई विचार संप्रत्य कहलाते हैं।
    यह बाल्यावस्था में महत्वपूर्ण है। जैसे ही बालक अपने मन का विकास करता है। वह विचारों को इंद्रियों के माध्यम से अर्थ प्रदान करता है।
    अंधे अनुकरण का त्याग करके अपने सूझ – बूझ से समस्या का समाधान करता है।
    अभ्यास और त्रुटि में भी सुधार करता है। व्यर्थ के प्रति जनों के स्थान पर सती अनुक्रियाओं का उपयोग करता है ।
3. संकल्पनात्मक अधिगम :-
    इसमें छात्र कठिन और जटिल समस्याओं का निराकरण करता है।
    तर्क चिंतन, मनन, विश्लेषण, तथा निर्णय निर्माण की शक्तियों को विकसित कर लेता है।
    मन का सर्वोत्तम ढंग से विकास ताकि छात्र विचारों तथा संकल्पनाओं का निर्माण कर सके।
    किशोरावस्था में महत्वपूर्ण
 

 

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