नाथद्वारा चित्र शैली
राजसमंद
प्राचीन नाम – सिहाड़
प्रारंभ काल – राज सिंह
स्वर्ण काल – राज सिंह
प्रधान रंग – हरा, पीला
चित्रकार – नारायण, चतुर्भुज, नरोत्तम, हरिदेव, घनश्याम,
घासी लाल,
महिला चित्रकार – कमला, इलायची
प्रमुख चित्र – राधा कृष्ण के चित्र, पिछवाई केले का वृक्ष,
गाय का चित्रण
यह एक धार्मिक चित्र शैली है।
इसे कृष्ण भक्ति की चित्रशैली कहा जाता है।
देवगढ़ चित्र शैली
राजसमंद
प्रारंभ काल – द्वारिका प्रसाद
स्वर्ण काल – महाराणा जय सिंह
प्रधान रंग – हरा पीला
प्रमुख चित्रकार – कमल, चौखा बैजनाथ
प्रकाश में लाने का श्रेय श्रीधर अंधारे को मोन जाता है ।
मेवाड़ + मारवाड़ + ढूढ़ाण चित्रशैली का मिश्रण है
कोकटेल चित्र शैली
आजारा महल व मोती महल का चित्रण है ।
चावंड़ शैली
उदयपुर
प्रारंभ काल – महाराणा प्रताप
स्वर्ण काल – अमर सिंह ।
प्रमुख चित्रकार – नासिरुद्दीन
1592 ई. में महाराणा प्रताप के काल में नासिरूद्दीन
द्वारा ढोला मारू का चित्रण हुआ ।
1605 ई. में अमर सिंह प्रथम के काल में राग माला सेठ
का चित्रण हुआ ।
2. हाडोती स्कूल की चित्रशैली
बूंदी चित्र शैली
प्रारंभ काल – सुर्जन सिंह हाडा
स्वर्ण काल – उमेद सिंह
प्रधान रंग – सुनहरा, चटकीला
चित्रकार – सुरजन, अहमद, ड़ालू, भीखराज
इस शैली को पशु पक्षियों की शैली कहा जाता है।
इस शैली में एक अंग्रेज को अपनी प्रेमिका के साथ
पियानो बजाते हुए दर्शाया है।
उमेद सिंह ने चित्रशाला का निर्माण करवाया जिसे
भितिचित्रो का स्वर्ग कहा जाता है।
रतन सिंह हाडा चित्रकला प्रेमी होने के कारण जहागीर
द्वारा सर बुलंदराय की उपाधि दी गई
मेवाड़ शैली से प्रभावित है ।
कोटा चित्र शैली
प्रारंभ काल – राम सिंह प्रथम का काल
स्वर्ण काल – उमेद सिंह
प्रस्थान रंग – टल्का, नीला
चित्रकार – लच्छीराम, नूरमोहम्मद, गोविंद डालू
इसे शिकारी चित्र शैली कहते हैं ।
भगवान श्रीराम को हिरण का शिकार एवं महिलाओं
को शिकार करते हुए दर्शाया है।