41. किसने सर्वप्रथम मारवाडी व्याकरण का निर्माण किया था
(A) श्यामलदास
(B) बौकीदास
(C) मुशी देवी प्रसाद
(D) पं. रामकरण आसोपा
(d)
42. मेवाड़, वांगड़ और पास के क्षेत्रों के भीलों में सामाजिक सुधार के लिए ‘लसोड़िया आन्दोलन’ का सूत्रपात किसने किया? [RAS Pre Exam-20091
(1) मावजी
(2) मोतीलाल तेजावत
(3) सुरमल दास
(4) गोविन्द गिरि
Ans. (1) व्याख्या लसोड़िया आंदोलन – लसाड़ा, बालोद, शेषपुर, पुन्जपुर, डूंगरपुर, धौलगढ़, मासां, पुनानी और सलूम्बर आदि गाँवों में अछूतों के लिए संत मावजी ने आन्दोलन कर सम्बल प्रदान किया। उन्होंने अंधविश्वास से बचने के लिए आदिवासियों को तैयार किया। मावजी का प्रमुख मंदिर एवं पीठ माही तट पर साबला गाँव में है। ये वहाँ श्री कृष्ण के निष्कलंकी (कल्कि ) अवतार के रूप में प्रतिष्ठापित है। उन्होंने धोलागढ़ के एकांतवास में 72 लाख 96 हजार छेदों से पाँच बड़े ग्रन्थों की रचना की जिसे चौपड़ा कहा जाता है, जो हस्तलिखित है। यह छपी हुई पुस्तक नहीं है। इसको केवल दीपावली पर ही मंदिर में दर्शन के लिये रखते हैं।
43. रणथम्भौर के दुर्ग का पतन कब हुआ ? | पटवार-2011]
(1) 11 जुलाई, 1311 ई.
(2) 11 जुलाई, 1301 ई.
(2) 11 जुलाई, 1306 ई.
(4) 11 जुलाई, 1306 ई.
Ans. (2) व्याख्या – रणथम्भौर का किला : रणथम्भौर का प्राचीन नाम रंत:पुर (रण की घाटी में स्थित नगर) था। रण उस पहाड़ी का नाम है जो इस दुर्ग से कुछ नीचे स्थित है तथा ‘थंभ’ उस पहाड़ी का नाम है जिस पर यह दुर्ग स्थित है। इसी वजह से दुर्ग का नाम रणथंभौर पड़ा। 8वीं सदी में जगत या जयंत द्वारा निर्मित (कुछ पुस्तकों में 994 ई. में रणथम्बन देव द्वारा निर्मित) यह किला सुरक्षात्मक दृष्टि से अद्वितीय स्थान रखता है। यह विशाल पर्वत पर स्थित होते हुए भी दूर से दिखाई नहीं देता है जबकि इसके ऊपर से शत्रु को आसानी से देखा जा सकता है। 1301 ई. में यहाँ पर राणा हम्मीर तथा अलाउद्दीन खिलजी के बीच युद्ध हुआ था, जिसमें अलाउद्दीन खिलजी विजयी रहा। रणथम्भौर शासक हम्मीर के बारे में एक दोहा प्रसिद्ध है- “सिंघगमन, सत्पुरुष वचन, कदली फलै इक बार। तिरिया, तेल, हम्मीर हठ, चढ़े न दुजी बार।”
44. तार लगा वाद्य यन्त्र है?
[ कनिष्ठ वैज्ञानिक सहायक (विष) 14.9.2019]
[ जेल प्रहरी परीक्षा 28-10-2018, Shift-II]
(1) खड़ताल
(2) अलगोजा
(3) डेंरू
(4) जन्तर
Ans. (4) व्याख्या – जंतर : वीणा की आकृति की तरह के इस • वाद्ययंत्र में दो तुम्बें होते हैं जिसकी डाँड बाँस की बनी होती है। इस तत् वाद्ययंत्र का प्रयोग देवजी की फड़ गाते समय गूजरों के भोपे गले में लटकाकर करते हैं।
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